आस्तिक और नास्तिक दर्शनों में मिथिला की अहम भूमिका : पूर्व कुलपति
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संस्कृत भाषा के कारण ही भारत था विश्वगुरू : कुलपति
आस्तिक और नास्तिक दर्शनों में मिथिला की अहम भूमिका : पूर्व कुलपति
दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्रातकोत्तर संस्कृत विभाग द्वारा “ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मिथिला एवं कश्मीर का योगदान : संस्कृत वांग्मय के परिप्रेक्ष्य में” जुवली हॉल में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का समापन हुआ। इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि संस्कार देने वाली बलशाली भाषा संस्कृत के कारण ही भारत विश्वगुरु था और बड़ा विश्वगुरु बनेगा। दर्शन हमें जीवन का सच्चा रास्ता बताता है। यदि ज्ञान-विज्ञान में संस्कार न हो तो वह हमारे लिए बेकार है।
वहीं कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. देवनारायण झा ने कहा कि आस्तिक दर्शनों के साथ ही नास्तिक दर्शनों के विकास में भी मिथिला की भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में शैव दर्शन प्रमुख है, जहां कैय्यट, लोल्लट, कुन्तक, शंकुक, कल्हण व अभिनवगुप्त आदि विद्वान हुए हैं। इस मौके पर त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल के पूर्व प्राध्यापक प्रो गोविंद चौधरी, रांची विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. जंग बहादुर पांडेय, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के पूर्व कुलपति प्रो. राधाकांत ठाकुर आदि ने विचार रखे। आगत अतिथियों का स्वागत एवं समारोह की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. जीवानंद झा ने किया। विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार प्रतिभागियों में 22 राज्यों के करीब 500 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए, जिनमें 19 मुस्लिम भी शामिल हैं। वहीं अमेरिका, थाईलैंड, श्रीलंका एवं नेपाल के 5 विदेशी विद्वानों का व्याख्यान भी तकनिकी सत्रों में हुआ।
आज नीतीश्वर महाविद्यालय की संस्कृत प्राध्यापिका प्रो. विभा शर्मा तथा पूर्व स्नातकोत्तर संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो रामनाथ सिंह को पाग, चादर, किट व मोमेंटो से सम्मान प्रदान किया गया। वहीं विभागीय कर्मी उदय कुमार उदेश तथा योगेंद्र पासवान को कर्मवीर सम्मान से सम्मानित किया गया। वहीं डॉ. विकास कुमार सिंह ने तकनिकी कार्यक्रम का संचालन किया। धन्यवाद ज्ञापन स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के शिक्षक डॉ. आर.एन. चौरसिया ने किया।